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Prafulla Kumar Tripathi

Drama Others

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Prafulla Kumar Tripathi

Drama Others

ऊष्मा भर दो सूरज !

ऊष्मा भर दो सूरज !

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शीत ऋतु में ज़िन्दगी भी,  

करवटें यूं ले रही है।

तह पे तह कपड़े हैं फ़िर भी, 

ठंढ क्यूँ तड़पा रही है।।


खुल चुकी गठरी गरम कपड़ों की, 

पहनूं क्या, उतारूं क्या ! 

यह मुआ मौसम है आफ़त सी, 

करूं मैं क्या !! 


उम्र संग ठंडक भी अपने 

दांव चलती है।

नौजवानी की ठसक से , 

हार जाती है।।


चौथपन से जो गुजरते लोग, 

उनका हाल देखो।

किस तरह हैं तंग वे सब, 

उनके सूजे गाल देखो।।


प्रार्थना करते मिलेंगे लोग, 

ऊष्मा भर दो सूरज।

कुदरती यह भोग, 

बांध न पाये धीरज।।



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