फिल्में
फिल्में
केवल मनोरंजन ही न करतीं
दिशा बोध भी कराती फिल्में,
साहित्य शोध उद्देश्य बोध का
दायित्वदर्पण बनजाती फिल्में।
बंकिमबाबू प्रेमचन्द्र उपन्यास
देश समाज फिल्मों से भाए,
नीरज और गुलजार के गीत
कण्ठ लता किशोर महकाए।
व्यंग्य सा अनकहा कहकहा
भारतीय फिल्मों की कहानी,
हम क्या थे क्या होंगे गुप्त सा
भावबोध कराती इनकी बानी।
एक शतक से लम्बी है यात्रा
भारत फ़िल्मों ने अब तक की,
देश ही क्या देश देशान्तर भी
नितबढती लोकप्रियता इनकी।
फिल्मजनक दादा साहब पौध
वैश्विक उद्योग बनकर छाई है,
तकनीक ग्लोबल और प्रभाव से
अन्तर्राष्ट्रीय ब्लाक हो भाई है।
कन्नड मलयालम तेलगु तमिल
फिल्म संस्कृति की ईकाई यह हैं,
भारत में तीव्रगति मल्टीप्लेक्स की
प्रवासीभारतीयों की पसन्द यह हैं।।
