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शशांक मिश्र भारती

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शशांक मिश्र भारती

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झरना

झरना

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हिमगिरि से

धीरे-धीरे बहता है

देखते हो

सामनेपू

छते हो फिर

क्या कहता है

झरना।

बहता है

झर-झर

कल-कल करता हुआ

गिरता है

मधुर ध्वनि करता हुआ

झरना।

बहता है शनैः शनैः

किन्तु अथक अस्थिर निरन्तर

झरना।

कहता है बहकर

मानव तू अपने कर्म पथ पर

बढ़ता चला जा

पहुंचेगा तू

मंजिल पर अपनी

करता हुआ झर-झर

कहता है यही

मधुर शब्द कर

झरना ।


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