पहाड़
पहाड़
सामने पहाड़ हुआ
वृक्षों से भरा हुआ
नील गगन चूमता
प्रकति रस ले झूमता।
अद्भुत लिए दृश्य
जहां गंदगी अदृश्य
सूर्य पहले ही आये
स्वर्ण सा चमकाये।
यदि पड़ती छाया
रात को चंदा हटाये
मनुष्य क्या लगाये पेड़
प्रकृति जो उगायें।
धूल कण कभी तो
आ मेघ धुल जाए
प्रदूषण शून्य प्रतिफल
नित पहाड़ जगमगाये।
निशा हो या वासर
समक्ष पहाड़ आये
वन्य जीवों को घास
सुख मनुज भी पायें
मानव को सुखद आस।
हरीतिमा का तम्बू
नित्य यहां लहराये
वनस्पति का परिहास
होंठों पर छा जाये
स्वच्छता का दर्पण
सीखो जो आभास दे
परहित हैं समर्पण
हमको मधुहास दे
उसका जो साम्राज्य
तोड़ो न त्रास दे,
समक्ष पहाड़ जो
नतमस्तक आस दे।।
