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शशांक मिश्र भारती

Abstract

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शशांक मिश्र भारती

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देश के लिए

देश के लिए

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उठो जागो अपने लिए न सही 

देश के लिए. 

जर्जर हो रही अर्न्तात्माओं 

मूल्यों के लिए 

कारकुनों के हाथों मरें 

रमुआ के लिए 

कोतवाल से पीड़िता 

कुएं में डूब मरी 

बुधिया के लिए

जागो.

जमींदार से खींच मंगायी गई 

दुधारी कजरी के लिए 

जागो 

देश के सुनहरे पल

कल के लिए

 ढाबे पर आधी रात तक

 बरतन मलते छोटू 

दीवाली की रात बिताते 

कारखाने में राधे के लिए 

हां जागों

इन सब के लिए! 

उन सब के लिए!! 

जो भर रहे देश को कंगाल कर 

अपनी तिजोरियां 

विकास के नाम पर 

गरीबों को ही मिटाये हैं 

 पांव नंगें सदन में चढ़े 

आज स्विस बैंकों में छाये हैं 

हां ! इन सब के लिए 

जागों!! 

फिर एक बार 

इस देश के लिए 

देशवासियों के लिए।


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