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शशांक मिश्र भारती

Abstract

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शशांक मिश्र भारती

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सरसों के फूल

सरसों के फूल

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मैंने देखा सरसों के कोमल पुष्प 

जो अभी तक पीले थे 

आज नीले हो रहे हैं 

अपनी व्यथा 

लोगों से 

रो रोकर 

कह रहे हैं 

वह

समझ चुके हैं 

जो स्थान पहले उनका था 

वह आज

अनाज ले चुका है 

मनुष्य उनकी ओर से 

विमुख हो

 गेहूं की ओर भाग चुका है।


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