चमकेगा सूर्य प्रखर
चमकेगा सूर्य प्रखर


क्या तुम्हारी धमनियों में बहता लहू लाल नहीं ?
क्या तुमने अपनी माँ का किया क्षीरपान नहीं ?
बताओ फिर क्यों हो तुम
बेसुध, निद्रा में लीन
शनैः-शनैः तुम्हारी मातृभू को वे अधर्मी
ले रहे हैं तुमसे छीन
इतिहास साक्षी है – भारत की पावन धरती ने
अनेक सपूत हैं जनमे
जो थे अग्रगण्य समूचे विश्व में
बुद्धि, बल, कौशल, रण में
काव्य-कल्पना में जहाँ नहीं
कालिदास का सानी
चाणक्य का काटा हुआ नहीं
माँग पाता था पानी
मुगलों की सैन्य-शक्ति का
किया वीर शिवा-राणा ने मुकाबला
छोटी सी टुकड़ी लेकर दुश्मनों
को नाकों चने दिए चबवा
जो न होते मीरजाफर औ
जयचंद सरीखे गृहदाही
कर उठते विदेशी लुटेरे
आर्य-शक्ति के सम्मुख त्राहि-त्राहि
लुटा सोमनाथ सत्रह बार,
हुई दिल्ली पर चढ़ाई
होता रहा खाली खज़ाना,
लड़ते रहे यहाँ भाई-भाई
एकजुट हो न पाया यह भारतवर्ष कभी हमारा
छिन्न-भिन्न हो गया यह गौरवशाली देश हमारा
निराशा के गहन अन्धकार में
आशाओं का दीया जला
जब भी सर पर बाँध कफ़न
क्रांतिकारियों का जत्था चला
आज चाहिए हमारे राष्ट्र को एक भूडोल क्रांति
पुनः लायेगा जो जग में सुख-चैन औ शांति
घर में असुरक्षित पड़े हुए थे
नारी – वृद्ध – आबाल
दया नहीं उपजी तनिक भी मन में
भेजा सबको काल के गाल
इन क्रूर हिंसक अधर्मियों का
करना है आमूल-चूल नाश तुम्हें
तभी शांति पाएँगी शहीदों की
भटकती हुई आत्माएं
कर रहे अधर्मी घोर अत्याचार,
हमारी स्त्रियों का शीलहरण
अरे निर्बुद्धियों, हो गया है क्या
तुम्हारे पुरुषत्व एवं आत्मा का हनन !
हे राम ! हे कृष्ण ! तुम्हारे देश को
कैसा यह घुन लग गया है
नारी की अस्मिता अक्षुण्ण रखने
वालों का अकाल पड़ गया है
मेरे प्रबुद्ध नागरिकों, क्यों कर रहे
तुम व्यर्थ में सोच-विचार
पहन रखी हैं हाथों में चूड़ियाँ या कर रहे
हो किसी देवदूत का इंतज़ार
नहीं उतरेगा कोई फ़रिश्ता
बचाने तुम्हें आसमान से
हर दुष्ट को सिखाना होगा सबक तुम्हें
अपने इसी हाथ से
चाणक्य-नीति अपनानी पड़े अथवा
शौर्य दिखलाना पड़े अभिमन्यु का
बनना होगा “कलकि” तुम्हें ही
करना होगा नाश विधर्मियों का
उत्तिष्ठत ! जाग्रत ! पुकार रही माँ भारती
द्वार पर प्यारी बहना खड़ी लेकर आरती
ध्वज उठाओ वत्स, बाँधो सर पर साफा
निकल रही है प्रभातफेरी
प्रण लो सर कटे, झुके नहीं मगर
बज रही है रणभेरी
यह कोई धर्म का मुद्दा नहीं
सवाल राष्ट्र की अस्मिता का
लगा तिलक भेजा है माँ ने,
झुकने न देना मस्तक उस गर्विता का
समर्थ हो तुम, अति बलवान
बढ़े चलो तुम सीना तान
मार्ग अवरुद्ध करें जो भी
करो उन्हें देश के नाम बलिदान
विजय सुनिश्चित है तुम्हारी
इस पुण्य-प्रयाण पर रहो अग्रसर
सौभाग्य-चन्द्र राष्ट्र का होगा उदित
चमकोगे समस्त संसार में
सूर्य की तरह तुम प्रखर।