साहिल मेरा
साहिल मेरा
संदेह का सागर मार रहा था थपेड़े
झकझोर रहा था मेरे विश्वास की नींव को
निर्भयतापूर्वक डट कर खड़ा था मैं
लहरें कर रहीं पुरजोर कोशिश ज़मीन पर
मजबूती से जमे मेरे पैर उखाड़ देने को.
क्योंकि सुदृढ़ता है अंतस में मेरे
उस वक़्त भी जब डरा हुआ होता हूँ मैं
मेरे कान्हा का हाथ है मेरे हाथ में
महसूस करता हूँ हर पल अपने साथ खड़ा उसे मैं.
आकुलता के समुद्र में डूब रहा था जब
निराशा का अन्धकार बाँहें फैलाये लीलने को था तैयार
व्यग्रता हावी नहीं हो रही होती मुझ पर
अनजानी आशंका भले घेरे हुए हो मुझे हर ओर से
क्योंकि साहस भरा होता है नस-नस में मेरे
उस पल भी जब घबराया हुआ होता हूँ मैं
मेरी आँखों में मेरा कृष्ण है
ह्रदय की हर धड़कन उसी का नाम पुकारती है.