सहनशील
सहनशील
जीवन की राहों पे चलने के लिए
बनना पडेगा सहनशील हमें वृक्षों की तरह.
प्रकृति करना चाहेगी धराशायी हमें,
हारेंगे नहीं हम, और मजबूत
कर लेंगे ज़मीन पे पकड़ अपनी.
सामना करना होगा धधकती ज्वालाओं का भी हमें,
हाँ, वो तकलीफदेह भी होगा और कठिन भी.
किन्तु जब गुजर जायेगा यह झंझावात
पहले से भी ज्यादा सशक्त होकर उभरेंगे हम.
पत्तियाँ शनैः-शनैः छोडती जाएंगी साथ हमारा
निराशान्धकार में डूबना नहीं है हमें,
नयी आ जाएंगी उनकी जगह लेने को.
जीवनपर्यन्त लगा रहेगा यह आना और जाना,
परिवर्तन नियम है संसार का,
तैयार रहना है बदलने को.
अंकुरित हुए थे हम तब,
परिपक्व और पूर्ण कुसुमित हो जाएँगे हम जब
सहारा देने को, बली बनाने को
रहेंगी मौजूद हमारी जड़ें हमेशा यूँ ही.
बरसों बाद,
कितने दावानलों से उबरने के बाद,
कितने परिधानों के बदलने के बाद,
हमारे नौनिहाल, हमारे नवांकुर
छोड़ जाएँगे छाँव हमारी
नयी दुनिया बसाने को.
किंचित भी चिंतातुर नहीं होंगे हम,
रहेंगे आश्वस्त,
एक दिन यही बिरवे, ये बालवृक्ष
परिवर्तित हो जाएँगे
ऊँचे, ताकतवर दरख्तों में.
विस्तरित होंगे
देने को छाया नवपल्लवों को,
जड़ें करेंगे सुदृढ़
सींचने हेतु धड़कते हृदयों को.