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Vivek Madhukar

Romance

4.5  

Vivek Madhukar

Romance

कहीं यही तो नहीं प्रेम

कहीं यही तो नहीं प्रेम

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ऐसे पल भी आते हैं जीवन में

झाँक रहा होता है जब तुम्हारी मुस्कान के पीछे से एक दर्द भरा एहसास,

छलक रहा होता है एक कतरा आँसू तुम्हारी मुस्कुराती आँखों की कोरों से ।


जान लो बस इतना,

ऐसे हर लम्हे में

खड़ा हूँ मैं पास तुम्हारे लिए हुए

अपना कंधा तुम्हें सहारा देने को ।


रख लिया है संजो कर तुम्हें तमाम

उम्र के लिए अपने दिल में,

अपनी ज़िंदगी की किताब के सारे पन्ने

कर दिए तेरे नाम ।

भेंट में दी है तुमने वो अमूल्य निधि मुझे,

ख़रीदा जा नहीं सकता जिसे दुनिया भर की

दौलत देकर भी - “प्रेम” - 

अपरिमित, निश्छल, अंतहीन प्रेम ।


तनहाई महसूस हो कभी,

अकेले पाओ ख़ुद को किन्हीं पलों में,

देखना गौर से अपने हाथों की उँगलियों के बीच

पाओगी तुम, वो जगह तो ख़ाली नहीं

गुँथीं हुई दिखेंगी मेरी उँगलियाँ 

सदा उँगलियों में तेरी।


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