मेरी हो तुम
मेरी हो तुम
मुशायरों की महफ़िल में कुछ हसरत हमने भी की
तेरे गेसुओं के साए में जिंदगी गुजारने की तलब हमने भी की,
काबिले तारीफ़ है, तेरी हर अदा,
तेरे हुस्न पर कुछ ग़ज़ल गुनगुनाने की जिहरत हमने भी की।।
आगाज-ए-मोहब्बत कुछ इस कदर हुआ,
तुझे जिस्म से रूह में उतारने की हिफा़त हमने भी की,
जानेवफा, जानेहया, बड़ी खूबसूरत हो तुम
जश्न-ए-शायरों की महफ़िल में उभरती ग़ज़ल हो तुम
चांदनी रात में चमकता चांद हो तुम
एक कमसिन, कामुख, खिलता गुलाब हो तुम।।
मेरी मुहब्बत हो तुम, मेरी हर एक नज़्म हो तुम
मेरे दर्द की दवा हो तुम,
मेरी हर एक ग़ज़ल में, अल्फाजों की झड़ी हो तुम
मुझे मुझसे ही जुदा कर, अपना बना लेने वाली
रोशन-ए-जिंदगी हो तुम।।
मेरी हो तुम, मेरी हो तुम।।

