नविता यादव

Abstract

4.6  

नविता यादव

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तोड़ जंजीरें, उड़ी मैं

तोड़ जंजीरें, उड़ी मैं

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हां मैं नारी हूं, हां मैं नारी हूं,

ईश्वर की सबसेे प्यारी संरचना,,

कुदरत की अनुपम देन,,,

 

मैं सब्र की मिसाल, मैं हर रिश्ते की ताकत हूं,

मैं पुरुष से उतनी ही श्रेष्ठ, जितना प्रकाश अंधेरे से तेेज,,,

मैं तुम्हारी गुलाम नहीं, मैं "सहधर्मिणी, "मित्र,"अर्धांगिनी हूं।।


मैं छोड़ अपना सब कुछ, तुम पर सब न्यौछावर करती,

फिर भी तुम कहते, घर पर रहती हो काम क्या हो करती?

माना तुम कमा कर लाते, पर गृह मंत्रालय मैं ही संभालती,,,

तुम्हारी कमाई को संजो कर, एक सूत्र में बांध परिवार का संचालन करती।।

फिर भी पूछते हो मैं क्या हूं करती।।


मैं नारी हूं अपने आत्मसम्मान की रक्षा खुद ही करती

जिसने जो सोचना है सोचें, अब फालतू परवाह मैं नहीं करती,

कर्तव्य मैं भी अपने बखुबी निभाती हूं,,,

तोड़ पराधिनता की जंजीरें , उड़ना मैं भी जानती हूं।।


मिला कंधे से कंधा साथ मैं भी तुम्हारे चलती हूं

किसी और की सोच बदलने के स्थान पर,

अब खुद को बेहतर बनाने में ध्यान देती हूं।।

अपनी खुशियों के लिए ,अपने को उन्मुक्त गगन में उड़ने देती हूं।।


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