विदाई
विदाई
बहुधा कहा जाता है
विवाह में
लड़कियों की होती है विदाई
और विदाई पर फूट फूट कर रोते हैं
लड़की के परिजन
ऐसा दृश्य उत्पन्न किया जाता है
जैसे कोई दुखों का पहाड़ खड़ा हो गया हो
लेकिन बदलते परिवेश में
शादी के बाद लड़के भी हो जाते हैं विदा
मां बाप जिन्हें बुढ़ापे की लाठी समझने की
बहुत बड़ी भूल करते हैं
विशेषकर वे लड़के जो
मनपसंद साथी का करते हैं चयन
अरेंज्ड मैरिज की तरह
बड़ी चतुराई से माता-पिता
की जमा पूंजी से ड्रीम मैरिज का
दुल्हा दुल्हन
बुनते हैं जाल
दुल्हन दो चार दिन की मेहमान बन
कर ले जाती है विदा दुल्हे को अपने संग
हां नौकरी पर जाना है तो परिवार से दूर जाएंगे ही
इससे किसको है इंकार
लेकिन परिवार के सदस्य सोचने पर विवश
तब होते हैं
जब शादी होते ही
बेटे व बहु के व्यवहार में देखा जाता है बदलाव
दुल्हन पक्ष द्वारा
शादी के समय बनाया गया ऊपरी लिफाफा
शनै:शनै: लगता है उतरने
हां लड़का भी होता है विदा
बदल जाते हैं तेवर
और भूल जाता है माता पिता व
अविवाहित बहन के प्रति कर्त्तव्य
बिना दहेज की दुल्हन के लिए
अब उसे लेना है गाड़ी व बंगला
इसलिए घर की जिम्मेदारी के प्रति
भूल जाता है कर्त्तव्य पथ
विवाह की सालगिरह भी
लड़की के घर ही जाती है मनाई
स्वयं के परिवार को शामिल करने की
नहीं समझी जाती आवश्यकता
तो निश्चित ही कहा जाता है
लड़का भी होता है विदा
बहन के साथ भी हर पल होती है तुलना
ठुकरा दिया जाता है उसका
कुछ समय के लिए
आर्थिक मदद का प्रस्ताव
बहन चाहती थी व्यवसाय में थोड़ी मदद
रखा था
बैंक दर पर ब्याज समेत
लौटाने का प्रस्ताव
चूंकि मां की सैलरी के निष्पादन में हो रही थी देरी
पिता तो सालों पहले ही ले चुके रिटायरमेंट
लेकिन भाई द्वारा स्पष्ट मना कर दिया जाता है
उसी बहन को
जो अपनी नौकरी के दौरान
भेजती थी हर महीने भाई को
मां से छुपा कर जेबखर्च
लेकिन अब उसी
भाई की प्राथमिकता हो गई है
नयी -नयी पत्नी की फरमाइशें
वही पत्नी जो
मायके से एक सूटकेस में
होकर आई थी विदा
शादी होते ही उसे चाहिए
सारे ठाठ बाठ
जबकि अपनी कमाई का बड़ा हिस्सा वह
करवाती है मायके में जमा
सच कुछ लड़कियां तो वाकई में
बहुत शातिर हो गई हैं
साथ में बेटी पक्ष भी
कोई तीज त्यौहार नहीं भेजा जाता
वधूपक्ष द्वारा
बल्कि बेटे की मां भेजती है
बेटा बहू के पास सामान
बेटों से भी उम्मीद ना ही करें तो ही सही है
ये लड़के जो रीति-रिवाजों को नहीं मानते
खड़े हो जाते हैं वधूपक्ष के समर्थन में
निस्संदेह ही
परिवार सिमट कर रह गया है अब
केवल दो व्यक्तियों तक
रिश्ते नाते सब खतरे में
सलाह तो यही है
कर दो मन मसोस कर
शादी के बाद
लड़कों को भी विदा
जवानी के नशे में चूर
ऐसे लड़के भूल जाते हैं
बहन का भी मां बाप की संपत्ति में
है आधा हक
जिसे बेटी छोड़ देती
लेकिन बेटे स्वयं के व्यवहार से
वंचित हो सकते हैं पूर्ण अधिकार से।