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Professor Santosh Chahar

Romance

4  

Professor Santosh Chahar

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अक्षुण्ण प्रेम

अक्षुण्ण प्रेम

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उसने कहा,

प्रेम से पीड़ा उपजती है


मैंने कहा,

हां, बिल्कुल सही

लेकिन


प्रेम में होना या प्रेम में हार जाना

दोनों स्थितियों में प्रेम तो अक्षुण्ण है,



प्रेम 

सदा जीवित रहता है 

दिल की धड़कन बनकर,


दो कदम भी आप प्रेम में साथ चले 

तब भी

उसकी सुवास रग रग में रहती है।


उसने फिर कहा,

तुम तो प्रेम में हार गए


मैंने कहा,

प्रेम में हारना ही तो जीत है,


प्रेम में

किसी को बांधने की कोशिश मात्र

उस व्यक्ति की

असुरक्षा की भावना को परिलक्षित करती है


उसने कहा,

प्रेम में बंधे नहीं तो प्रेम कैसा?


मैंने कहा,

विवाह की डोर में बंधना ही तो प्रेम नहीं ?


प्रेमी की खुशी के लिए

उसे बंधनमुक्त कर देना

प्रेम का अनूठा रुप है

और


प्रेम को बांधना

स्वार्थ का छिछला स्वरुप मात्र।



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