अजनबी अतिथि
अजनबी अतिथि
पीड़ा
की गठरी उठाए,
नाप रहें हैं
अपनी मंजिल,
पैरों में पड़े हुए छाले
भी राह रोक न पाएं
भूख प्यास से व्याकुल
जिजिविषा के धनी,
पहुंचना चाहें
अपने गांव,
क्योंकि
गांव कभी
अजनबी नहीं होते।
पीड़ा
की गठरी उठाए,
नाप रहें हैं
अपनी मंजिल,
पैरों में पड़े हुए छाले
भी राह रोक न पाएं
भूख प्यास से व्याकुल
जिजिविषा के धनी,
पहुंचना चाहें
अपने गांव,
क्योंकि
गांव कभी
अजनबी नहीं होते।