शापित आईना
शापित आईना


प्रेम की
कील पर टंगा आइना,
जिंदगी की जंग के साथ
अब
दागदार पड़ा है
मेरे घर की ऊंची ममटी में,
आइना
देखने से डरती हूं मैं,
क्योंकि ये दिखाता है
मेरे पीछे खड़े
उन चेहरों का वीभत्स स्वरुप
जो कभी थे मुझे अति प्रिय,
दिख जाती हैं मुझे
उनकी
कुटिल मुस्कान, घिनौनी हरकत व चालबाजियां,
उजागर होता है,
द्वेष व घृणा से भरा अंतस
ऐसे चेहरे,
जो कड़वा सुन पाते नहीं
और
नागफणी के कांटों से लैस
स्वांग भर
भेद जाते हैं मेरा संवेदनशील हृदय,
बार बार छलनी होने के बावजूद
होकर भावनाओं के वशीभूत
लुटाती रहती हूं
गाढ़ी कमाई की पोटलियां
लेकिन
करती हूं हमेशा सीधी बात
कि
मेरी एक अपेक्षा भी अखरती
है सभी को,
नहीं जाती हूं ममटी में,
देखने
ये शापित आइना
चाहती हूं
रिश्तों की कच्ची डोर का भ्रम बना रहे।