दुल्हन की पोटली
दुल्हन की पोटली
दहेज़ लेने से मना कर देने पर,
उन्हें तो सुसराल कुछ लाना था
इसलिए आजकल
दुल्हनें पोटली में बांध कर,
लेकर आती हैं
एजूकेशनल लोन,
लाने की,परंपरा तो निभानी होती है
टोकने पर, पतियों को चुंगल में ले चुकी
ऐसी फेमिनिस्ट लड़कीयां
घरों में तूफान खड़ा करवाती हैं,
शादी के कुछ समय बाद
भेद खुलने पर,
टकराव तो निश्चित होते हैं
घर में बैठकर,
प्रति मिनट की खबर रखने वाली
बेटी के सुसराल में, दखलंदाजी करती माएं
वाकई पढ़ी-लिखी गंवार होती हैं,
बेटियों की कमाई को
ऐसी मांए निंयत्रित करती हैं
और पतियों की कमाई को,
ये तथाकथित फेमिनिस्ट लड़कियां,
जिन्हें ये नहीं मालूम कि
फेमिनिज्म का मतलब बदतमीजी नहीं होता,
झूठ और चालाकी नहीं होता।
लोन की किस्तों के जाल में उलझाकर
प्रेम में अंधे हुए
लड़कों का करती हैं
भरपूर दोहन,
रिंग सेरेमनी से लेकर
विदेशों में हनीमून तक
अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा
लगा देती हैं भावुक माएं,
फिर भी
भड़क जाते हैं ऐसे लड़के
जिन्होंने प्रेम-विवाह किया होता है,
वो सभी सास फिर बुरी कहलाती हैं,
क्योंकि वे सटीक सवाल उठाती हैं।
ऐसे लड़के
भूल जाते हैं, माएं
जूझ जाती हैं विषम परिस्थितियों से
ताकि बच्चों के सपनों में रुकावटें ना आएं,
वे समझते क्यों नहीं ?
जो माएं अपने बलबूते पर
बच्चों को कैरियर में स्थापित
करने का दम रखती हैं,
तो बहू, बेटे की
झूठ, बदतमीजी और चालाकी भी
बर्दाश्त नहीं करेंगी,
क्या ग़लत होता है ?
ये कहना,
इन तथाकथित
फेमिनिस्ट लड़कियों के घरवालों से
कि, "दुल्हनें कर्ज़ लेकर नहीं आती"।
दहेज़ नहीं, कर्ज़ भी नहीं
यही स्वस्थ परंपरा होनी चाहिए।