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Rooh Lost_Soul

Drama Romance Tragedy

4.5  

Rooh Lost_Soul

Drama Romance Tragedy

रूह-ए-एहसास

रूह-ए-एहसास

3 mins
553


सुना है, उस रोज़ आए थे तुम

मेरे दरवाज़े पर, और

बहुत देर तक खटखटाते भी रहे

आवाज़ें भी दी थी शायद, तुमने

फिर तुम लौट गए, उस आशियाने में

जो कभी मेरा घर हुआ करता था


मैं नहीं थी उस रोज़ उस मकां में

हाँ मगर दरवाज़े पर तेरी उंगलियों के

निशाँ हौले से छुए थे मैने,और

वो क़दम जैसे ही रखा मैने अंदर,तो

मेरे नाम की गूँज,तेरी आवाज़ में मिली है मुझे


यकीं मानो तुम्हारी छुअन से सिहर उठी थी

टूटी-बिखरी यादें मेरी, और वो

तेरी आवाज़ पर तड़प उठा था, मेरा भी दिल

ख़ुद की धड़कन को सुना था मैने, देर तलक

तमाम ख़्याल,कुछ बुरे से पनपने लगे,कही गहरे


तुम ठीक हो न, तुम्हें कुछ हुआ तो नही, और

न जाने कितने सवाल,ख़ुद से ही कर लिए मैने

होश ही नहीं मुझको कि कब से मैं यूँही खड़ी थी,

अपने ही घर के अधखुले से दरवाज़े पर


वो किसी के आने की आहट सी हुई ,

काँधे पर जैसे ही उसने थपथपाया, तो

लौट आई वापिस यादों के गलियारों से,

वो मुस्कुराता सा मेरा आज खड़ा था ,

जिसके जीने की वज़ह ,वो कहता है मुझे


मेरी उलझी नज़रो से वो,पल में समझ गया

कि मेरे कल ने मुझे फिर से, यूँ सकुचा दिया

उसने आग़ोश में अपने हौले से लिया, और

धीरे से मेरे पेशानी पर उभर आई

पसीने की बूँदों को, हल्के से फिर साफ किया

मुस्कुराते हुए देखा उसने मेरी आँखों मे,

फिर बिन कुछ कहे, छुपा लिया अपने सीने में


याद नहीं मगर हाँ, शायद यूँ ही हम दोनों

खड़े रहे कुछ देर,अपने ही दरवाज़े पर

उन यादों से घिरी लपटों की तपिश अब बुझने लगी,

जैसे आग़ोश हो उसका, मख़मली बर्फ़ की चादर की तरह


आख़िर वो फिर मुझे, मेरे ही अतीत से

मेरे आज में, वापिस ले ही आया ,

खो न जाऊ फिर से कही, इस ख़्याल से ही

था उसका भी दिल घबराया

कहाँ नही उसे और न ही, ज़ाहिर होने दिया,

अब इतना तो समझती हूँ,उसकी धड़कनों को,

जिसने मुझे, फिर कभी रोने न दिया


उसकी बेइंतेहा मोहब्बत ने मुझे

वो साहिल है दिया ,जिसके बिन न जाने

कितने बरस थे, मेरे मंझधार में गुजरे

न रह सकी उस घुटन में और न तोड़ पाई

कभी, वो अनदेखी जंजीरे अतीत में

जिसकी आहट पर आज ये दिल

था कुछ देर को कुछ तड़पा हुआ


माना मोहब्बत उसने, कभी की ही नही थी हमसे

मगर मेरी मोहब्बत में तो, सिर्फ वो ही था बसा

आज वक़्त और हालात उस मोड़ पर है,

जहाँ मेरा आज ,मुझे प्यार से थामे खड़ा है ,

बंद कर दिए वो दरवाज़े, घर में आने के बाद

जिसमें रहती हूं मैं अपने,

खूबसूरत से आज के साथ


सुना है, उस रोज़ आए थे तुम

मेरे दरवाज़े पर.....

गर फिर आओ मेरे दरवाज़े पर, तो

पढ़ लेना वो तख़्ती,जो टंगी है अब बाहर,

"अतीत की यादें और वादों की

इस घर मे कोई जगह रही नहीं

कि चले जाओ वही जहाँ

ये रूह-ए-एहसास, अब रहती नहीं।


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