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नही बनी कविता के लिए

नही बनी कविता के लिए

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कैसे बुनते हैं

शब्दों का मायाजाल

कैसे करते है कवि

छोटे शूल को विशाल

मैं तो शूल बनकर ही

खुद को घायल कर जाती हूँ

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


रूप रंग की बात को

कितनी गहराई चाहिए?

दिल की तड़पन को कैसे

प्यास और उद्गार चाहिए?

तड़पन सी गहराई में उतर नही पाती हूँ

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


सावन,बादल,बिजली सी

कलम चले जब मौसम पर।

गरज,बरस जब सावन आए

साजन आए लौट के घर।

सावन की गरजती बिजली से

मैं डर और सहम जाती हूँ

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


शब्दों के उपयोग से

निर्जीव को करना सजीव।

पाठकों के दिल को छूना

कर देना उन्हें विदीर्ण।

सजीव,निर्जीव में फसकर मैं बोझिल हो जाती हूँ।

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


अलंकार उपमा लिखकर

विस्तार सहित विशेषता देना।

संज्ञा,क्रिया का ज्ञान हो

तभी कविता को मान मिले।

उपमा,रूपक से अलंकारों में

स्वयं भावहीन हो जाती हूँ।

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


लिख नही पाती हूँ

साहित्य से जुड़ा कुछ।

और नही लिख पाती उर्दू

भारी-भरकम से शब्द।

अपने सरल शब्द, विचारों से

किसी को रिझा नही पाती हूँ।

हाँ नही बनी मैं कविता के लिए

इसलिए कथा लिख जाती हूँ।


मित्रों को लिखता देख कर

खुद से ही खफा हो जाती हूँ।

क्यों नही बनी कविता के लिए

या कोशिश अधूरी कर पाती हूँ ?


लिखती हूँ कथा खुद के लिए

पर कविता भी लिखना चाहती हूँ।

आभार है उन मित्रों का जिनसे

प्रोत्साहन पाती हूँ।

लिखूंगी किसी दिन मैं भी ऐसा

ये भरोसा खुद को दिलाती हूँ।


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