प्यार नहीं तुमसे मगर
प्यार नहीं तुमसे मगर
मुझे तुमसे प्यार नहीं, हाँ मगर
फ़िक्र करती हूँ अब भी तुम्हारी ,
तुम्हें खुद का ख़्याल रखना आता ही कहाँ है,
भूल जाते थे अक़्सर रखकर वो
अपनी चाभियां तो कभी मेरी
मीठी सी नाराजगियाँ।
कितनी बार कहा करती थी
याद रखा करो, कल को अगर
मैं न हुई तो, तुम लबों को मेरे
चुप कर देते थे, अपने लबों से
ये कहते हुए, कि तुम मझे कहीं
जाने ही नहीं दोगे।
गर जाना भी पड़ा दूर तुमसे तो
थाम कर हाथ मेरा,
तुम साथ चले आओगे ।
वक़्त के साथ पता न चला कि
ये वक़्त पहले बदला या तुम।
मैं तो अब भी वही हूँ मगर तुम
अब वो नहीं जिसे मेरे बिना
एक पल भी रहना था गंवारा नहीं।
मुझे तुम्हारी आदत तो नहीं हाँ मगर
मेरी आदत को, अब भी, तुम्हारी आदत है।
हाँ मुझे अब तुमसे प्यार नहीं, मगर
अब भी तुम्हारी पहले सी फ़िक्र रहती है ।।