" परिश्रमी जिगर"
" परिश्रमी जिगर"
मेहनत करो, आप तो बस जमकर
मंजिल खुद आयेगी, पास चलकर
सागर में कूद जाओ, लहर बनकर
ढूंढ निकालोगे जी कई, मोती कंकर
वही मनुष्य चलता है, सीना तानकर
जो खुद्दार है, चलता स्वयं के पैरों पर
वही पक्षी छूते है, आकाश को उड़कर
जिनके हौसले होते है, बड़े शुभयंकर
उनसे चल तू साखी बहुत संभलकर
जिनके भीतर बसा हुआ है, तम घर
जो कामचोर, आलसी लोग है, भयंकर
वो पथ भ्रष्ट होते है, और करते है, नर
जो सच्चा है, सत्य है, वो होता है, निडर
वो मनुष्य तो झुका सकता है, अम्बर
जो मनुष्य परिश्रम करता है, निरन्तर
वो मनुष्य मोम बना सकता है, पत्थर
जो भीतर रखता है, परिश्रमी जिगर।
