कृष्ण सखी की कथा
कृष्ण सखी की कथा
आज खींच दुश्शासन स्वयं अपना काल लाया है
अचंभित हूं फिर भी क्यों सभा में मौन छाया है
धर्म राज आज दाैं पे मेरा प्रेम विश्वास लगाए है
द्युत सभा ने आज स्वयं शक्ति सम्मृढ़ी सद्बुद्धि को ललकार है
प्रथम नमन पितामह भीष्म को,नमन गुरु द्रोण को
नमन महाराज को, नमन कृपचर्या को
भूल गई धर्म पांचाली कह ना यह सभा पाए
समय अभी भी बहुत है धर्म शायद याद आए
गंगा पुत्र अब कैसे माँ गंगा से आंख मिला पाओगे
अपने मौन का जवाब कैसे दे पाओगे
गावां दिया शौर्य अपना गंगा पुत्र एक क्षण में
कैसे भुला दिए धर्म शास्त्र का ज्ञान
इसे धर्म रण में
मौन का परिणाम सभा के संत सूत समेत चुकाएंगे
महारथी भी आने वाले धर्म युद्ध को झेल ना पाएंगे
गुरु द्रोण अपने शिष्यों को कैसा धर्म
सिखाया है
छल में फसाकर धर्म राज को वचनों से बांधा है
शास्त्र के सभी पाठ सीख कर बैठे सभी संत जो
कैसे देख पाए सर झुकाए धर्म के अंत को
नारी का अपमान कर
अब मा सरस्वती के वेदों को कैसे दोहरा पाएंगे
क्या अब युद्ध के पहले मा दुर्गा की आराधना कर पाएंगे
क्या इस अन्याय पर अंग राज कर्ण
आप ना धनुष उठाएंगे
माहा दानी कर्ण क्या आप वचनों से मेरी लाज बचाएंगे
सूर्य पुत्र आपकी शोभा को सदैव यह ग्रहण सताएगा
इस पाप से ना कोई कवच कुंडल बचा पाएगा
दूषासन्न नारी का आंचल छूते
हाथ कैसे ना काप्ते हैं
कैसे धर्म ज्ञानियों के यह अपशब्द बोल ख्याल ना लड़खड़ाए हैं
कैसे किसी और से सहायता मंगुं
जब स्वयं पांडव भी दास हैं
अब सिर्फ गोविंद ही मेरी आस हैं
सह रही जो यह अपमान ऐसे कौनसे कृष्ण मेरे कर्म थे
हुए पूर्ण विश्वास श्री कृष्ण से है धर्म है
अग्नि सूता की पवित्रता को भंग करने वाली
सभा ने अपनी आत्मा की हत्या की है
आज हुई को अपमानित वो कुरु वंश की ग्रह लक्ष्मी कृष्ण सखी है
आज सहायता के लिए ना युधिष्ठिर का धर्म ना भीम का बल आया
अर्जुन के तीर भी असफल
कैसे आज अधर्म मुस्कया है
अशुद्ध को शुद्ध करना आग्नी का ही तो कार्य है
अब इस सभा को शुद्ध करना भी मेरा भी भार्य है
हर एक अश्रु का मोल वीर सारे रक्त से चुकाएंगे
रणभूमि में मृत्यु पा कर भी शौर्य ना जीत पाएंगे
राज माता मांग रही क्षमा पुत्र पक्ष में
महाराज दे रहे वचन पुत्र हित में
अब भी कोई अधर्म को रोकने ना आगे आया था
इस सभा ने धर्म के हर मायने को ठुकराया था
इस सभा ने स्वयं श्री रूपी स्त्री का अपमान किया है
फिर धर्म स्थापन हेतु नारी ने दर्द सहा है
अब देखेगी सृष्टि क्या नारी के अपमान का दंड है
गौरी बनेगी महाकाली होने वाला युद्ध प्रचंड है
युगों युगों तक यह कथा दोहराया जाएगी
गौरी अब महाकाली बन रण भूमि आयेंगी
नारायण संग महाकाली धर्म का पाठ सिखायेगी
दुर्योधन शकुनि दुश्शासन को नरक में भी जगह ना मिल पाएगी
और जीते हुए हर क्षण मौत का अनुभव दिलाएगी
सखी के लिए नारायण भी युद्ध में आयेंगे
अध्रमियी का नाश कर भूदेवी को बचाएंगे
उसका अपमान तुम करोगे जिसकी लाज नारायण ने बचाई थे
मर्यादा तो उस दिन अंग राज कर्ण ने गवाई थी
गौरव कलंकित उस दिन गंगा पुत्र भीष्म का था
अपमानित उस सभा में संपूर्ण कुरु कुल था
युगों पहले था पाठ जो सीख लो
की नारी अपमान पाप है
महाकाली की क्षुधा अब भी
पापियों के रक्त हेतु अशांत है।