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Malvika Dubey

Abstract Fantasy

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Malvika Dubey

Abstract Fantasy

मन का घर : पीहर

मन का घर : पीहर

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मेरा पीहर

क्यों मन वहां ही भागता है

दुख में उसी का कंधा मांगता है

और खुशी में वहां का हाथ पकड़ झूमना चाहता है


वर्षों की रीत है , पीहर पराया पिया घर ही अपना है

जानकी को मिथिला और गौरा को मैना के आंगन को छोड़ना ही है

फिर अंत में क्यों सिया ने अंत में भूमि मां के पास ही आराम पाया

क्यों सती ने त्रिकाल दर्शी की चेतवानी को भी व्यर्थ ठहराया


तो उत्तर है की पीहर की धूप भी अलग है और छाव भी

वहां ना बिछिया से बंधे पाव है,

ना अपनों के दांव है


धूप भी पीहर की मीठी सी होती है

खिड़की को हल्के से खटखट्टी है

फिर प्यार से मुख सहलाती है

और जिस जरा थक जाऊं 

मां धूप को भी छुपा लेती है

और जो घर कहने को अपना है

वहां सूर्य उदय से पहले भी उठूँ 

तब भी पहली किरण तंज कसे 

आखिर आंखों में ऐसा भी क्या सपना है


वहां मेरी पसंद ही सर्वप्रथम थी

यहां तो भूल ही गई क्या मुझे पसंद था

मेरे पसंद के व्यंजन सब के मन को भाते है

मेरे ही पसंद के रंग हर कोने में नजर आते थे

और जिस घर को समाज ने मेरा अपना ठहराया है

वो घर जिसमें रस्मों के साथ माता पिता ने भिजवाया है

गुम सी हो गई है मेरी पसंद 

आजादी ने बदलूं चीजें चंद 

घर के किवाड़ के बाहर खुद से पहले मेरा नाम 

फिर में कम है अधिकार मेरे लेकिन जिम्मेदारी तमाम


वहां सादे खाने में स्वाद है

मौन में सालों की बात है

गर्मी भी थोड़ी कम लगती है

ठंड भी कम चुभती है

दीवारें मेरे पीहर की सहारा है छत है

मेरे ऊपर लगी बंदिश नहीं

चौखट तो स्वागत का स्थान है

मेरे संस्कारों का परिदर्शक नहीं

वहां छत पे टहलने घूमने जाति थी

यहां काम के बिना छत पर जाना नही होता 


सुविधाओं में पीहर सबके भिन्न हो सकते है

सुकून में नहीं

सावन का रहता इंतजार मिलने जाऊं कभी

वहां की नींद मिट्ठी, उठने का दिल से मन करता है

काम करने ना देता जब कोई और काम करने का मन करता है


प्रेम दोनों जगह है

पर पीहर में शर्त नहीं

चाबियों का छल्ला हो पिया घर में

पर सम्पत्ति पे अधिकार नहीं


खुशियां यूं ही बिखरी रहती है

पीहर में मेरे

कोने कोने में हँसीं मिल जाती है

बचपने के मस्त मौला मिजाज फिर मिल जाते है


मानते सब है मुझे ससुराल में

भाभी, बहु , पत्नी कई रिश्ते है

पर पहंचानते सब पीहर में मुझको

सिर्फ बेटी होने का सुख है

मिल जाए पिया के संग महल भी

पर मन मेरा पीहर में रहता है



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