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Malvika Dubey

Abstract Romance Inspirational

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Malvika Dubey

Abstract Romance Inspirational

तुम मेरा श्रृंगार बनो

तुम मेरा श्रृंगार बनो

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तन से मै खुद सज लूंगी

तुम मेरे मन का श्रृंगार बनो

और बनो तो यूं बनो

की जन्मों जन्म न मिटो 


मैं खामियां नजरंदाज करती हूं

हर बार माफ करती हूं

खुद पे होता अन्याय हर दिन नजांदाज करती हूं 

तुम ऐसा मेरा अंजन बनो की 

की मेरी दृष्टि बदल जाए


खुद के लिए आंखों में सम्मान का सुरमा लग जाए

ऐसे सजना आंखों में की निडरता मन में बस जाए

उठा के देखूं आंखें जब आईने में खुद को

अपने लिए ही शायर बन जाऊं


अपनी आंखों में ही सागर देखूं हर चांद सितारे भी

देख सकूं हर खूबी कमी अपने सपने सारे भी

पर जब थक के नम हो आंखें मेरी 

दूर न तुम हों जाना


जब मन की भावन्य बहे आंखों से 

तुम भी कुछ दूर ही रूक जाना

बंद हो जब अश्रु तब

याद से वापिस आ जाना


उसके बाद तुम मेरे माथे की बिंदी

बन जाना

हर शिकन को मेरी हल्के से सहला कर 

मिटाना

कभी मेरी हंसी से तुम खिलजाना

कभी उदासी में ढल जाना

बन जाना मेरी जीवन की बिंदु

जिसपे खुद को समर्पित कर दूं


सजा के तुम्हे जब माथे में लगाऊं

सिर उठा खुद पर नाज कर पाऊं

रंग गिरगिट से नही मगर मेरे मन से बदलना

ऐसा मुझे पे ढलना की बस अपनी 

उपस्तिथि मात्र से मेरा रूप सुज्जातित कर देना


केशों के लिए गजरा बनना बंधन नहीं

मन मुताबिक मेरे कभी लेटो को उड़ने देना 

कभी व्यस्तता में कसके बांधने देना

सर पे ऐसे सजना की पहचान का चिन्ह बनो

भिन रंगो और प्रक्रो में हो भले ही

मुझसे रोज मिलन 


कभी परेशानी में उलझी हूं तब भी स्वीकार करना 

रूखी सी हूं कभी तब ही न अलग करना

और जब खुश हो चमकू मैं 

तब अंधेरे आसमान पे चांद सा चमकना

सुकून में तुमसे खुलू , परेशानी में तुमसे बंधू

मन सम्मान का प्रतीक बन 

सिर पे हमेशा रहे सको 


बिछिया बन नीव से सहयोग दो

झुमका बन कान में मिठास घोलो

कंगन बन सृजन को मेरे सुहावना बनाओ


तुम सूरज मैं चांद पियाजी

तुम्हारी चमक से मैं भी चमक लूंगी

इर्द गिर्द काटते चक्कर

साथ एक दुनिया बना लूंगी


ऐसा तुम श्रृंगार बनाना की

साथ तुम्हारे मेरी पहचान न मिटे

खोना चाहूं जो तुम में

फिर भी नई पहचान मिले।


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