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Amit Kumar

Abstract

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Amit Kumar

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खुली क़िताब

खुली क़िताब

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जब साथ हो कोई ऐसा

जो लम्हों सा अनमोल हो

लबों पर खुश्क़ शबनम

जब मौसम सा तौल हो

कौन नहीं चाहेगा मुस्कुराना

ऐ ज़िंदगी तेरी मेहरबानी

किसी की आंख में ख़ुशी

किसी की आंख मे पानी

तोहफा तो दिया है

तूने सबको अपने हिसाब से

यह अलग बात कोई

मोल लगा बैठे अपनी किताब से

आईना तो आईना है

अक़्स उतना ही दिखायेगा

जितना किसी का चेहरा उभर कर आयेगा

कोई कहे कुदरत कोई कहे खुदाया

सुनो आचार्य बात दिल की

और दिल की खुली किताब सी।

         


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