पता.... (नज़्म)
पता.... (नज़्म)


किसी ने मुझसे पूछा,
पता मेरे उस घर का,
जहां मैं रहती हूं....
उस दीवार ओ दर का,
किसी ने मुझसे पूछा,
पता मेरे उस घर का....
कितनी भीड़ व शोर है,
कितना बड़ा शहर है।
पर मैं तन्हाई के साथ हूं,
और मेरा मन बेघर है।।
किसी ने मुझसे पूछा,
पता मेरे उस घर का....
तो मैं उससे क्या कहती
घर तो है मेरा भी.....
संग वहां तन्हाई रहती।
इसी जहां में है घर मेरा,
जहां मेरा रैन बसेरा,
उम्र कटने तक बस,
डाल रखा है यहां डेरा।
घर तो है मेरा भी.....
पता तो है मेरा भी.....