Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer
Become a PUBLISHED AUTHOR at just 1999/- INR!! Limited Period Offer

Vinita Singh Chauhan

Inspirational

4  

Vinita Singh Chauhan

Inspirational

पतंग और बचपन~~~~~~~~~~~

पतंग और बचपन~~~~~~~~~~~

1 min
388


नन्हे हाथ में धागे की लटाई, 

दूर तलक अर्श में नजर टिकाई, 

संतुलन बना उड़ चली मेरी पतंग, 

पा गई पक्षी से भी ज्यादा ऊंचाई। 


मेरा बचपन मेरा छोटा सा जहान, 

भूख प्यास का ना मुझको भान, 

देखो मेरे अंदर की खुशी, 

मन प्रफुल्लित है पतंग को तान। 


उड़ेगी अब मेरी पतंग, 

होकर मौला मस्त मलंग।

ढील दे और ढील दे भैया, 

ऊंचे और ऊंचे गई रे भैया।


खुशी से जब मैं पतंग को ताकता,

स्वयं को भी साथ में आंकता।

क्या हुआ जो नहीं भर सकता उड़ान,

पर पतंग को दे सकता हूं ऊंची तान।


मेरी पतंग है मेरा अभिमान, 

मेरे हिस्से का छोटा सा आसमान,

रंग बिरंगी मेरी कागज की पतंग,

जहां पक्षी से भी ऊंचा भरती उड़ान।


मन में नई लहर नई उमंग, 

खुशी से उड़े जैसे पतंग। 

शब्दों से बनते विचार 

विचारों की बनती श्रृंखला 

श्रृंखला होती धागे जैसी। 

सद्गुणों का माँझा 

और अंर्तशक्ति का रंग 

देता धागे को मजबूती ,

हौसलों और इरादों से,

ऊंचे उड़ जाती मेरी पतंग।

ढील दे और ढील दे भैया, 

ऊंचे और ऊंचे गई रे भैया।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Inspirational