देश प्रहरी
देश प्रहरी
तिरंगे में लिपटा देश की शान
पृष्ठभूमि पर गूंजता राष्ट्रगान
वतन पर न्यौछावर करके जान
देशप्रहरियों ने सदा बढ़ाया सम्मान...
जब से प्यारा बेटा,
बनकर देश प्रहरी,
निकला सीमा पर,
ताकती रहती है बस,
गांव की उस गली को,
माॅ॑ की बूढ़ी निगाहें...
एक वादा लिया दोनों ने,
और हर रोज छत पर,
चांद को देखती है वो,
क्योंकि चांद को वो भी,
जब सीमा से ताकता है,
तो चांद पर टिक जाती हैं,
दोनों की अदृश्य निगाहें...
बिट्टू ने एक बड़ा सा,
कागज का प्लेन बनाया,
और छत पर खड़ा हो,
उड़ा दिया सीमा की तरफ,
जिसमें लिखा हुआ था,
जल्दी आ जाओ पापा,
मुझे रात में डर लगता है,
सोऊंगा संग डाल गले पर बाहें...
एक दिन खबर आई,
उसके वापस आने की,
सुबह से ही बूढ़ी माॅ॑ ने,
देहरी पर रंगोली सजा रखी थी,
पत्नी ने सुबह से ही,
सज-संवर नजरें बिछा रखी थी,
कब आओगे पापा बिट्टू की,
मासूमियत बार-बार पूछ रही थी...
पर कुछ देर में ही,
मंदिर का दीपक बुझ गया।
नजरों में एक तिनका सा,
कहीं से आकर चुभ गया।
कुछ खोने का एहसास,
सबको अंदर तक भिगो गया...
तिरंगे में लिपट कर,
आया जब देश प्रहरी,
रो उठी वो गलियाॅ॑ वो राहें,
पथरा गई मां की निगाहें,
सपने सारे धुल गए,
अश्कों के सैलाब में,
तंद्रा टूटी सबकी,
जब वहां एक आवाज गूॅ॑जी,
दादी, मम्मा... पापा कहाॅ॑ हैं...?