वादियों का मर्म
वादियों का मर्म
कड़कड़ाती ठंड
बर्फीली वादियों में
श्वेत चादर ओढ़े
मौन तपस्वियों सा
खड़े रहते वृक्ष
तूफानों में भी
सीना ताने
फिर भी जीवित रहते
मौसम की मार झेलते
अटल अडिग निश्चिंत
जानते हो क्यों ?
एक इच्छा शक्ति जो
आस जगाती है
जीने की स्फूर्ति लाती है
इन दृढ़ प्रतिज्ञ पेड़ों को
इंतजार रहता है
सुनहरी धूप का
जो बर्फ पर पढ़ते ही
आस जगाती है कि
अब मौसम बदलने वाला है
खुली वादियों में भी
फिर सूरज चमकेगा
और चंद दिनों के लिए
फिर हरियाली आएगी
और जी लेंगे पुनः
भरपूर इच्छाशक्ति से।
बस यही जीवन है
क्रमशः निरंतर चलता रहता है
कभी कड़कड़ाती ठंड में
तो कभी सुनहरी धूप में
कभी बर्फीली वादियों में
तो कभी हरी-भरी वादियों में
बस यही जीवन है
बस यही जीवन है।