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Vinita Singh Chauhan

Abstract

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Vinita Singh Chauhan

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रुक गया है मेरा वर्तमान

रुक गया है मेरा वर्तमान

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 जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

रुक गया है मेरा वर्तमान-2


सीढ़ियों से नीचे उतरूं तो,

एक ओर है अतीत की खाई। 

सीढ़ियों से ऊपर जाऊं तो,

दूजी ओर भविष्य की कठिन चढ़ाई।

किधर होगा मेरा अगला पायदान।

जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

  रुक गया है मेरा वर्तमान।


मन कहता है भूलकर पिछला जीवन, 

 कर मेहनत और पा जा ऊंचाई।

 पर कदम ठिठक जाते हैं,

 देखकर जीवन की गहराई।

 कांधे पर है जिम्मेदारियों की कमान।

  जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

 रुक गया है मेरा वर्तमान।


कुछ पाने की आस में,

मैं आज भी रुकी हुई हूं,

फिर भी मैं वो धुरी हूं,

जिसके चारों ओर,

जीवन चल रहा है,

जमीं चल रही है,

चल रहा है आसमान।

जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

 रुक गया है मेरा वर्तमान।


 कभी दिल रोता है,

 तो कभी मचलता है,

 कभी टूट कर बिखरता है।  

अपनों ने ही तोड़ा दिल को,

 फिर भी इस दिल में,

बसती है अपनों की ही जान।

 जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

 रुक गया है मेरा वर्तमान।


ना जाने कितने दिन बीते,

बीत गई कितनी रात,

बीत गए कितने साल,

पर आज भी उसी सीढ़ी पर,

ठहरी हुई हूं,

मैं और मेरा सामान।

जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

 रुक गया है मेरा वर्तमान।


 उम्मीद पर दुनिया कायम है,

 उम्र मेरी अब बीतने लगी है,

  संभाल रखी थी जीवन मूल्यों की गठरी,

  अब वह रीतने लगी है।

  ईश्वर के आशीर्वाद से,

मेरे अपने बनेंगे मेरा स्वाभिमान।

जिंदगी की चंद सीढ़ियां चढ़ते ही,

रुक गया है मेरा वर्तमान।


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