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Alok Singh

Tragedy

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Alok Singh

Tragedy

रिश्तें

रिश्तें

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इक दुबला पतला सा पेड़ था,

चंद टहनियां चंद पत्ते थे ।

क़िस्मत की हवा से , 

लचकते और मटकते थे ।


फिर एक दिन चिड़िया आई,

पेड़ के मन को वह ख़ूब भायी।

चिड़िया ने भी तान लगाई,

राग गीत संगीत सुनाई।

छोटा प्यारा सा घर वो बनाई ।


कुछ दिन बाद हरियाली छाई,

पेड़ की टहनी पर नई कोपले आई ।

घोंसले से झांके कुछ परिंदे,

खुशी से चिड़िया पंख फड़फड़ाई।


पेड़ पर मीठे फल फिर आए,

सबने मीठी भूख मिटाई।


फिर मौसम ने ली अंगड़ाई,

उदासीन चिड़िया हो आई ।

नए परिंदें आत्म मुग्ध थे ,

कि हौले से पतझड़ आई।


पेड़ अकेला ठूठा सा,

थोड़ा ज़िंदा थोड़ा मृत सा।

छाव घोंसले पर ला करके ,

फिसल रहा था वह कुछ मरू सा।


फिर भी पत्तों की हरियाली,

कर मजबूत वो डाली डाली ।

जड़ से वह कुछ सूख रहा था ,

अंदर अंदर टूट रहा था ।


फिर लम्हा तेजी से भागा,

प्यारा परिंदा घर छोड़ कर भागा,

अन्तिम प्यास अधूरी रख कर,

पेड़ मृत्यु में फंसा अभागा ।


ऊपर ऊपर हरा भरा था ,

फूलों पुष्पों से लदा पड़ा था ।

लेकिन जड़ से उखड़ चुका था ,

औधें मुंह गिर पड़ा मरा था।


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