रिश्तें
रिश्तें
इक दुबला पतला सा पेड़ था,
चंद टहनियां चंद पत्ते थे ।
क़िस्मत की हवा से ,
लचकते और मटकते थे ।
फिर एक दिन चिड़िया आई,
पेड़ के मन को वह ख़ूब भायी।
चिड़िया ने भी तान लगाई,
राग गीत संगीत सुनाई।
छोटा प्यारा सा घर वो बनाई ।
कुछ दिन बाद हरियाली छाई,
पेड़ की टहनी पर नई कोपले आई ।
घोंसले से झांके कुछ परिंदे,
खुशी से चिड़िया पंख फड़फड़ाई।
पेड़ पर मीठे फल फिर आए,
सबने मीठी भूख मिटाई।
फिर मौसम ने ली अंगड़ाई,
उदासीन चिड़िया हो आई ।
नए परिंदें आत्म मुग्ध थे ,
कि हौले से पतझड़ आई।
पेड़ अकेला ठूठा सा,
थोड़ा ज़िंदा थोड़ा मृत सा।
छाव घोंसले पर ला करके ,
फिसल रहा था वह कुछ मरू सा।
फिर भी पत्तों की हरियाली,
कर मजबूत वो डाली डाली ।
जड़ से वह कुछ सूख रहा था ,
अंदर अंदर टूट रहा था ।
फिर लम्हा तेजी से भागा,
प्यारा परिंदा घर छोड़ कर भागा,
अन्तिम प्यास अधूरी रख कर,
पेड़ मृत्यु में फंसा अभागा ।
ऊपर ऊपर हरा भरा था ,
फूलों पुष्पों से लदा पड़ा था ।
लेकिन जड़ से उखड़ चुका था ,
औधें मुंह गिर पड़ा मरा था।
