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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Tragedy

नौकरी

नौकरी

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अजी नौकरी का भी अपना मज़ा है।

जहां अपनी चलती नही कुछ रज़ा है।

हुकम हाकिमों का बजाते रहो बस-

यहांँ ज़िन्दगी हर घड़ी इक क़ज़ा है।


दवाबों तनावों की बोझिल फ़ज़ा है।

बिना पाप के भोगता नित सज़ा है।

सवालों जवाबों से परहेज़ कर चल-

यहाँ कोई सुनता नहीं इल्तिज़ा है।


रहो जब तलक भी किसी नौकरी में।

न कुछ और सोचो कभी ज़िन्दगी में।

भुला दो सभी रिश्ते नाते जरूरत-

लगा दो अरे आग अपनी ख़ुशी में।


नियम हाकिमों के नए रोज बनते।

कि साहब यहां ख़ुद ही उलझन में रहते।

करें गलतियांँ हम तो सुनते हैं बातें -

मगर इनकी ग़लती मुनासिब ही रहते।


करो हर घड़ी सबकी तीमारदारी।

जताए बिना अपनी कोई लचारी।

न छुट्टी, न अर्जी, न आराम कुछ दिन-

लगाए रखो नौकरी की बिमारी।


ज़हन में ख़याल इसका ही जा-ब-ज़ा हो।

अमल हुक़म हो चाहे बेजा बजा हो।

चलेगी नहीं हुक्म उदूली एक भी -

कि इसमें तुम्हारी न बेशक रज़ा हो।


पड़ो चाहे बीमार या मर ही जाओ।

मगर नौकरी अपनी पहले बचाओ।

न जो कर सको तो अभी बात सुन लो-

उठाओ ये झोला तुरत घर को जाओ।


कभी कुछ न सोचो सिवा नौकरी के।

नहीं तुम हो कुछ भी बिना नौकरी के।

चलाता है घर बार यह नौकरी ही -

करो रात - दिन हक़ अदा नौकरी के।



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