हिन्दी दिवस
हिन्दी दिवस
आवश्यकता पड़ी हमें क्यों हिन्दी दिवस मनाने की।
हिन्दी की अपनी विशेषता जन-जन तक पहुंचाने की।।
क्यों आती है लाज हमें हिन्दी भाषा अपनाने में।
हिन्दी में लिखने पढ़ने में और हिन्दी में बतियाने में।।
एक दिवस ही क्यों विशेष क्यों हर दिन नहीं मनाते हैं।
हम हिन्द के वासी हिन्दी को गर्वित होकर अपनाते हैं।।
'अ' अनपढ़ से जिसने हमको 'ज्ञ' से ज्ञानी है किया सदा।
क्यों आज उसी हिन्दी को त्याग कर सबने है वनवास दिया।।
'अ' से अज्ञान का तिमिर मिटा 'ज्ञ' ज्ञानदीप जिसने बारा।
उस ज्ञान दायिनी हिन्दी की है मंद पड़ी अविरल धारा।।
क्यों अपनी ही बगिया उजाड़ औरों के बाग खिलाते हो।
औरों की भाषा अपना कर सारे जग में इठलाते हो।।
निज भाषा को जिसने छोड़ा जिसने निज मूल भुलाया है।
वह गर्म ताप में झुलसा है उसका जीवन कुम्हलाया है।।
निज भाषा को क्यों उन्नति का हम सदा समझते अवरोधक।
जबकि भारत भाषा हिन्दी है सब भाषाओं की द्योतक।।
अपनी भाषा जिसने छोड़ी अपनी पहचान मिटा डाली।
अपने हाथों निज परंपरा की सारी जड़ें हिला डाली।
क्या किन्हीं अन्य भाषाओं ने कभी दिवस विशेष मनाया है?
फिर क्यों हिन्दी के हिस्से ही यह दुर्दिन बोलो आया है?
मत त्यागो तुम दूजी भाषा तुम मत उसका अपमान करो।
लेकिन अपनी भाषा हिन्दी अपनाओ और गुणगान करो।।
हिन्दी का ऐसा प्रसार करो जन-जन की भाषा हो हिन्दी।
जग एक सूत्र में बंधा रहे जीवन परिभाषा हो हिन्दी।।