दीवाली में
दीवाली में
अम्मा सोच रही इस बार क्या दिये बिकेंगे दीवाली में।
हर घर में जब बिजली वाले लाइट जले दीवाली में।।
भूल गए सभ्यता संस्कृति
भूल गए दीपक का महत्व।
चकाचौंध में अंधे हो कर
भूल रहे अपना अस्तित्व।
झूम रहे हैं अंधे हो कर इस झूठी खुशहाली में।
मिट्टी वाले दिये जलेंगे फिर कैसे दीवाली में।।
अपने घर अंधेरा करके
दुश्मन को उजियारा दे
नारा देते बस स्वदेशी का
और विदेशी चीजें ले।
सस्ती सुंदर रंग बिरंगी झालर बिके दीवाली में।
मिट्टी वाले दिये जलेंगे फिर कैसे दीवाली में।।
कैसे दूंगी मैं बच्चों को
कपड़े और खिलौने
पटाखे और फुलझड़ियों
के लिए लगेंगे रोने।
नहीं बिके तो होगा फांका और भी इस कंगाली में।
मिट्टी वाले दिये जलेंगे फिर कैसे दीवाली में।।
सबके घर रौशन होंगे
मेरे घर अंधियारा क्यों
हम गरीब ही बनते हैं
किस्मत का मारा क्यों।
महलों वाली खुशी मिलेगी झोपड़ी मिट्टी वाली में।
मिट्टी वाले दिये जलेंगे फिर कैसे दीवाली में।।