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रिपुदमन झा "पिनाकी"

Romance Classics Fantasy

4  

रिपुदमन झा "पिनाकी"

Romance Classics Fantasy

मौसम

मौसम

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चँचल चपला चमक - चमक कर अंबर को चमकाती है।

नभ में घटाएँ उमड़ घुमड़ कर टकराती, गरजाती है।।


इंद्रवज्र की धमक धरा को थर्राती है, डराती है।

घनप्रिया, सौदामिनी अपनी चपल कला दिखलाती है।।


काले - काले बादल देख गगन में सब मुस्काते हैं।

प्यास बुझेगी अब धरती की सोच के यह हर्षाते हैं।।


नवजीवन मुस्काएगा फिर से धरती लहराएगी।

चूनर धानी रंग ओढ़ कर गीत खुशी के गाएगी।।


इतरा कर झूमेगा मौसम रंग बहार सजाएगा।

चेहरों पर मुस्कान खिलेगी हर प्राणी सुख पाएगा।।


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