गुलाब सी ज़िंदगी
गुलाब सी ज़िंदगी
गुलाब से सीखो जिंदगी जीना
कांटों में भी रह कर मुस्कुराते रहना,
देवों को अर्पित करके हम शीश झुकाए,
फिर यह गुलाब शापित कैसे कहलाए,
मुश्किल है गुलाब बनकर जीना
आसान नहीं होता यूं ही राजा कहलाना,
हवा के झोंकों से या कांटो की चुभन से
शीत की शीत लहर या धूप की तपन से
घायल हो जाए जब बदन सहम जाए अंतर्मन
फिर भी गुलाब का मुस्कुराते रहना
और अपनी सुगंध को बिखरते रहना,
जहां कष्ट अपार है वही सुख का भंडार है
कष्टों से जो भी लड़ा वही ईश्वर पर चढ़ा,
तोड़ने वालों को भी सुगंध देता है
खुद टूट कर औरों का मन हर लेता है,
शत्रु को भी यह मित्र बनाता
प्यार में दरार हो तो गुलाब ही मिटाता ।