एक ख्वाहिशों का शहर
एक ख्वाहिशों का शहर
बहुत खुश था मेरा दिल
दूर दरिया पार मैंने एक शहर देखा,
ज्यादा कुछ नहीं देखा।
खाली हाथो में
उनकी आँखों में रहम देखा,
उनके छोटे आशियानों
के ऊपर खुला आसमा देखा।
उस आसमा में बिना पैर
परिंदो को उड़ते देखा
मैंने दरिया पार एक शहर देखा।
वहाँ मैंने एक रोटी को देखा
जिसके एक एक टुकड़े में
पिता के प्यार को देखा।
जहाँ जमीन को बिस्तर देखा
उस पर सोते अपनों को देखा
वैसी सपनो की अंधेरी दुनिया में
जुगनू की तरह जगमगाते
कुछ ख्वाबों को देखा।
मैंने दरिया पार एक शहर को देखा
उनकी आँखों में मैंने
नमी को देखा
उस नमी में अपनों को देखा।
अपनो के सपनों को देखा,
मेने बहुत देखा दूर दरिया
पार ख्वाहिशों के एक शहर को देखा।
देखना जरूरी नहीं
महसूस करना जरूरी है
उन खुशियों को
जिनके पास कुछ ना होते हुए भी
उनकी खिलखिलाहट बादलों से परे है।।
