मानव को धरती की चिंता भारी है
मानव को धरती की चिंता भारी है
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मानव को धरती की चिंता भारी है,
पर्यावरण है खतरे में, धरती को बचाने की जंग जारी है;
नए होर्डिंग, नए ऐड;
सिलेबस में भी शामिल हुआ है,
सेमिनार और आन्दोलन,
लोकल से इंटरनेशनल तक,
कन्वेंशन भी भरमार किया हैI
गाने बन गए, मूवी बन गई;
कितने सरकारी, उससे भी ज्यादा गैर-सरकारी प्रोजेक्ट बन गए;
“स्वच्छता“ – चुनावी जुमला बन गई,
पीएचडी हो गई, यूनिवर्सिटी बन गईI
व्यक्तिगत से राष्ट्र तक,
आरोपों की मारामारी है,
मानव को आजकल –
धरती की चिंता भारी हैI
सब कुछ तो करके देख लिया,
शैतान को पाले बैठा है,
झूठे दंभ में फिर भी ऐंठा है,
ये लालच है, जो खतरा है;
धरती, पर्यावरण तो केवल चेहरा बदलेंगे,
तु खुद को बचा, ये तू है – जिसको खतरा हैI
रोक सके तो रोक ले अपने लालच को,
अब तेरे मिटने की बारी है,
और मानव को धरती की चिंता भारी हैI