STORYMIRROR

Vikas Sharma

Abstract Inspirational Others

4  

Vikas Sharma

Abstract Inspirational Others

मैंने मानवता के कद को कम होता देखा है

मैंने मानवता के कद को कम होता देखा है

1 min
213


काशवी की मम्मी जब उसे हेलोवीन से डराती है,

वो मेरे सीने से चिपक जाती है,

एक पल के लिए मुझे सकूँ का अहसास होता है,

पर दूसरे लम्हे में ही ये अहसास बदल जाता है,

मैं चाहता हूँ वो डरे,

वो डरे

पर इन झूठे किरदारों से नहीं


मैं चाहता हूँ वो डरना सीखे,


मैंने कोरोना समय में डर से जुदा लोगों को देखा है

लोगों की मक्कारी, कालाबाजारी

जमाखोरी की मारा-मारी

बेबसी और लाचारी

के साथ महामारी

उस दौर में इंसान को इंसान से नजरें चुराते हुए देखा है,

डर जुदा इंसान को कम

इंसान होते देखा है

अपने चारों ओर ऐसे कमतर इनसानों की भीड़ को देखा है, 


इसलिए मैं चाहता हूँ

वो डरे,

वो डरे

किसी की खामोशी को ना पढ़ पाने से,

किसी को साथ की जरूरत हो, उसका साथ न दे पाने से,

किसी की उम्मीद को न जगाने से,

किसी हताश की तरफ न हाथ बढ़ाने से,

इंसान के मशीन हो जाने से,

मैं चाहता हूँ की ये डर उसके साथ रहे,

क्योंकि

इन बेख़ौफ़ नजारों में,

जहां इंसान नहीं डरा, दूसरे की बेबसी को रास्ता बनाने से,


मैंने मानवता के कद को कम होता देखा है।



Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract