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Vikas Sharma

Abstract Inspirational Others

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Vikas Sharma

Abstract Inspirational Others

रंग

रंग

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रंग,

देखें है कभी?

छुआ है?

ठोस या द्रव, किसी श्रेणी में रखा है?

सजीव या निर्जीव, में कहीं सोचा है? 

मापने या नापने की कोशिश की है? 


रंग, देखे हैं कभी?

ये जो लाल, पीले, हरा, नीला, काला और सफेद...

नाम गिने तो ख़त्म ना हो,

पर क्या है इनकी सच्चाई?

इस सवाल से जूझे हो कभी?


कुछ और रंग याद दिलाता हूं,

तेरा रंग, मेरा रंग

जीत का रंग, हार का रंग

खुशी का रंग, गम का रंग

ज़िंदगी का रंग,

इतिहास का रंग, संस्कृति का रंग

ये भी ऐसे ही हैं, 

गिनोगे तो ख़त्म ना हो।


पर जो है 

वो मैं हूं, तुम हो, ये प्रकृति है

रंग? 

देखे हैं कभी


सोच रहे हो, 

रंग के नशे में हूं, 

इसलिए रंग में होते हुए भी रंग को नहीं पहचान रहा हूं,

>ये भी माना,

पर कुछ और सवाल रह जाते हैं,


क्यों रंग दिन में और रात में बदल जाते हैं?

क्यों पास दूरी से अलग हो जाते हैं?

जैसा मुझको दिखती है दुनिया,

वैसी ही सबको दिखती है क्या?

आसमान दिखता नीला है पर है काला

सच है क्या?

एक सफेद प्रकाश में कैसे तमाम रंग भरे हैं? 


गूगल भी कर लेना

पर सोचना? 

उलझना! 

रंग को एक बार फिर से समझना, 

ये अहम ब्रम्हा अस्मी जैसा है, 

रंग आप में है, या रंगो में आप हैं?


खैर छोड़ो, 

आपके चेहरे पर मुस्कान का रंग ही फबता है,

उसे संभालिए, 

फुरसत के रंग में था, सो रंग पर खेल कर बैठा, 

रंग का उत्सव मनाइए, बेहिसाब रंग ज़िंदगी में भरिए,

क्योंकि

जब तक मैं हूं, आप हैं

ये तय है,

रंग रहेंगे।

Happy Holi


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