"क्या महफूज़ हैं बेटियां"
"क्या महफूज़ हैं बेटियां"
ये कौन से भेड़ियों की
प्रजातियां आई है मेरे वतन में...
ये कौन से गिद्ध उड़ रहे
तलाश में चिड़ियों के बदन के...
कभी ढूंढते कंजक गली में
नवरात्रि में देवी मां रिझाने को,
कभी ढूंढते मासूमों का गोश्त
अपनी देह की भूख बुझाने को,
ये कौन से वहशी लोग हैं
जो लगे हैं मानवता के पतन में...
ये कौन से भेड़ियों की
प्रजातियां आई है मेरे वतन में...
गली चौराहे सड़कें कहीं भी
महफूज़ कहां हैं आज बेटियां,
परचम भी लहरा रहीं बेटियां
पर चम भी बचा रहीं हैं बेटियां,
भेदती नज़रें चुभती फब्तियां
फिर भी पढ़ने निकलीं बेटियां,
गुल बनने से पहले कलियां
क्यों ख़ौफ़ज़दा सी हैं चमन में...
ये कौन से भेड़ियों की
प्रजातियां आई है मेरे वतन में...
नहीं हूं मैं हिंसा का पक्षधर
पर सुन ऐ लोकतांत्रिक सरकार,
बना दो सख्त कानून नया
निर्भया को दे दो यह अधिकार,
अपने हाथों से दे उसे फांसी
जिसने किया उससे बलात्कार,
अरब देशों की तर्ज पर
व्यभिचारी लटका हो सड़क पे...
ये कौन से भेड़ियों की
प्रजातियां आई है मेरे वतन में...!