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हेमंत "हेमू"

Inspirational

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हेमंत "हेमू"

Inspirational

पिता खामोश रहता है।

पिता खामोश रहता है।

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अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है।


सच है कि हालातों के आगे जब जुबां मजबूर होती है,

तब औलाद की खामोशी में दर्द को "माँ" पहचान लेती है,

औलाद की खामोशी में दर्द को "पिता' भी पहचान लेता है,

पर अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है।


"पिता" यह जानता है कि "माँ" से कभी नज़र अंदाज ना होगा औलाद का दर्द,

मगर फिर भी प्रश्न "औलाद को कोई दिक्कत तो नहीं?" कर "माँ" से वो "माँ" को आगाह करता है,कि कहीं औलाद का दर्द "माँ" से नजर अंदाज ना हो जाए,

इस तरह ख़ामोशी से "पिता",

"पिता" होने का फर्ज अदा करता है,

क्योंकि अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है।


देख लो इतिहास,हर काल में "पिता" का किरदार गंभीर, मजबूत और कठोर दिखता है,

क्योंकि "पिता" का भावुक होना,औलाद को कमज़ोर या बर्बाद करता है,

इसीलिए हालातों के आगे जब औलाद की जुबां मजबूर होती है,

तब औलाद की खामोशी में दर्द को पहचान कर भी, 

अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है,


यदि मान लो कुम्हार को ईश्वर और चाक को सृष्टि,

तब "माँ" गीली मिट्टी और उसपर ममता भरा स्पर्श है,

और "पिता" वो ताप है जिसपर कच्चा घड़ा तपकर पकता व मजबूत होता है,

और जल को कर शीतल, प्यासे की प्यास बुझाता है,

इसीलिए किरदार "पिता' का गंभीर, मजबूत और कठोर दिखता है,

क्योंकि "पिता" का भावुक होना औलाद को कमज़ोर या बर्बाद करता है,

इसीलिए हालातों के आगे जब औलाद की जुबां मजबूर होती है,

तब औलाद की खामोशी में दर्द को पहचान कर अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है,

अपने किरदार के आगे "पिता" खामोश रहता है।   

                                                             


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