कोटि-कोटि वर्षों से यूँ ही कुम्भकार का चाक घूमता। कोटि-कोटि वर्षों से यूँ ही कुम्भकार का चाक घूमता।
अंधकार को भेद कर उजाले से लौ लगाता है अंधकार को भेद कर उजाले से लौ लगाता है
चाक पर चढ़ने के लिए खुद को कुम्हार के हवाले करना होता है चाक पर चढ़ने के लिए खुद को कुम्हार के हवाले करना होता है
आज लफ़्ज़ों को गढ़ रही हूँ मैं उन आँखों को खोलकर जिस पर काली पट्टी बंधी हैं तुम भी सच्चाई से रु-... आज लफ़्ज़ों को गढ़ रही हूँ मैं उन आँखों को खोलकर जिस पर काली पट्टी बंधी हैं त...
इतराती हूं मैं तेरे,चाके पर घूम घूम कर जब देता तू मुझको आकार नया ! इतराती हूं मैं तेरे,चाके पर घूम घूम कर जब देता तू मुझको आकार नया !
चाँद तू बड़ा पाक है आँखों का तू चाक है चाँद तू बड़ा पाक है आँखों का तू चाक है