"ठोकरों से पैदा हुए हैं "
"ठोकरों से पैदा हुए हैं "
मिल जाएगी मंजिल, भटकते भटकते,
गुमराह तो वो लोग हैं, जो घर से निकले ही नहीं।
ऐ जमाने वालों, हमें डराने और गिराने की सोचना भी मत,
हम वो हैं जो ठोकरों से पैदा हुए हैं।
हर रुकावट को हमने स्वीकारा है,
खुद को पहचाना है, अपने आत्म-सम्मान में विश्वास रखा है।
सपनों की ऊँचाइयों की तलाश में हम निरंतर,
हर मोड़ पर, हर चुनौती पर, हमने अपने जज्बात संजो के रखा है।
ठोकरों से हमने सीखा है, हर गिरावट से निकलना,
मंजिल की ओर बढ़ते हुए, हमने खुद को पहचाना है, हमने अपना सच जीना सिखाया है।
जीवन की राहों में, हर रोज़ का सफर है सिखाता,
हर अनजानी राह पर, हमने अपनी मंजिल की खोज जारी रखी है।
मंजिल की प्राप्ति में हर कठिनाई को गले लगाया है,
अपनी मेहनत, आत्म-विश्वास, और उम्मीद से, हमने जीत की राहें सजाई हैं।
गुमराह तो कभी होने नहीं देंगे,
क्योंकि हम वो हैं, जो ठोकरों से पैदा हुए हैं।
मिल जाएगी मंजिल, भटकते भटकते,
गुमराह तो वो लोग हैं, जो घर से निकले ही नहीं।
ऐ जमाने वालों, हमें डराने और गिराने की सोचना भी मत,
हम वो हैं जो ठोकरों से पैदा हुए हैं।
हर चुनौती हमारी ताकत को दिखाती है,
मंजिल की ओर हमें आगे बढ़ाती है।
जीवन के सफर में, हर कदम पर हम अग्रसर्ता हैं,
ठोकरों से नहीं, हौंसलों से हमें मिली ज़िंदगी की सीख है।
आगे बढ़ते हुए, हम सपनों की ऊँचाइयों को छूना चाहते हैं,
आत्म-निर्भर और अविचलित, हम अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हैं।
गुमराही की आंधी में भी हमें अपनी पहचान मिली है,
ठोकरों के बावजूद, हमने अपनी मंजिल की पहचान बनाई है।
हम वो हैं जो ना रुकते हैं, ना हारते हैं,
मंजिल की खोज में, हम हमेशा आगे बढ़ते हैं।"
मिल जाएगी मंजिल, भटकते भटकते,
गुमराह तो वो लोग हैं, जो घर से निकले ही नहीं।
ऐ जमाने वालों, हमें डराने और गिराने की सोचना भी मत,
हम वो हैं जो ठोकरों से पैदा हुए हैं।
हर कठिनाई से गुजरते हुए, हमने अपनी मंजिल की ओर बढ़ते हुए देखा है,
उड़ानों को चुनौती से भरा, हमने खुद में विश्वास जगाया है।
जीवन के रास्तों पर, हर कदम पर हमने आत्म-निर्भरता सीखी है,
अपनी मंजिल की तलाश में, हमने खुद को पहचाना है।
गुमराही की बुँदें हमें नहीं रोक सकती,
क्योंकि हम वो हैं जो ठोकरों से पैदा हुए हैं।
ऐ जमाने बालो, हमें डराने की कोशिश न करो,
हम वो हैं जो आगे बढ़ते हैं, जो अपनी मंजिल को पा लेते हैं।
