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ashok kumar bhatnagar

Children Stories Fantasy Inspirational

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ashok kumar bhatnagar

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दीपमाला — विचारों का उत्सव 

दीपमाला — विचारों का उत्सव 

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 रात के आँगन में जब अंधेरा उतर आता है,
 मन के भीतर भी कोई कोना धुंधला हो जाता है।
 तभी कहीं से एक दीपक टिमटिमाता है —
 जैसे आत्मा कहती हो, "अभी सब समाप्त नहीं हुआ है!"
दीपावली सिर्फ़ दीयों की पंक्ति नहीं,
 यह विचारों की दीपमाला है —
 जहाँ हर लौ एक स्मृति है,
 हर उजियारा एक नया संकल्प है।
पहला दीप — आभार का,
 उन संबंधों के लिए जिन्होंने हमें थामा,
 जब जीवन ने हमें तोड़ना चाहा।
 दूसरा दीप — क्षमा का,
 उन गलतियों के लिए जो अनजाने में हुईं,
 जो हृदय में अब भी चुभती हैं, पर अब बुझानी हैं।
तीसरा दीप — विश्वास का,
 जो अंधेरे में भी कहता है — "प्रकाश आएगा।"
 चौथा दीप — सपनों का,
 जो राख में भी अंगार ढूँढ लेते हैं।
फिर पाँचवाँ दीप — माता-पिता के चरणों में,
 जिनके आशीष बिना कोई दीप पूर्ण नहीं होता।
 छठा दीप — मित्रों की हँसी में,
 जहाँ जीवन फिर से खिल उठता है।
 सातवाँ दीप — प्रेम का,
 जो सबसे कठिन रात में भी नहीं बुझता।
दीपावली का हर दीप एक विचार है,
 हर विचार एक दीपक बन सकता है,
 यदि उसमें सच्चाई का तेल हो,
 और धैर्य की बाती जल रही हो।
चलो, इस बार रोशनी सिर्फ़ घरों में नहीं,
 दिलों में जलाएँ।
 रंजिशों की राख उड़ाकर,
 मुस्कान की अग्नि सजाएँ।
क्योंकि जब विचार उजले होते हैं,
 तो संसार भी सुनहरा लगने लगता है।
 जब मन का अंधेरा पिघलता है,
 तो हर छाया में भी दीप दिखने लगता है।
आज चलो, अपने भीतर उतरें —
 वहाँ जहाँ स्वयं का दीपक प्रतीक्षा में है।
 वह दीप जो वर्षों से बुझा पड़ा है,
 उसे फिर से जीवन देना है।
दीपमाला सिर्फ़ दीपों का उत्सव नहीं,
 यह आत्मा की वापसी का क्षण है।
 जहाँ हर लौ कहती है —
 “अंधकार तेरा भी धन्यवाद,
 क्योंकि तूने ही मुझे प्रकाश का अर्थ सिखाया।”


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