हृदय में राम स्थापित कर
हृदय में राम स्थापित कर
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।
अपने घर को
अयोध्या का
राजभवन बनाएँ।
जहाँ राम-लखन का
प्रेम बसाएँ।
भरत-से
भ्रातृ भक्त बन जाए।
शत्रुघ्न के सेवा-भाव
कण-कण में
बस जाए।
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।
राजभवन-सा
अपना घर-आँगन सजाएँ।
सीता, उर्मिला,
मांडवी एवं श्रुतिकृर्ति के
परस्पर प्रेम से घर का
कोना-कोना महकाएँ।
माताओं के आँचल से
ममत्व छलकता ही जाए।
पिता तन-मन से संतुष्ट
वृक्ष की छाया से खड़े।
काश, ऐसा सदन
हर घर में सज जाए
तो यह पावन भूमि
कंचन हो जाए।
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।
सुमंत्र-से मंत्री
अपनी मंत्री परिषद
में सज्जित करें।
प्रजा के हर एक
जीव की
रक्षा-सुरक्षा का
भार उठाएँ।
इस माटी के
कण-कण में
पुष्पों को खिलाएँ।
सियाराम-सियाराम की
धून हवा में गूँज जाए।
मानव से मानव मिल जाए।
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।
राम-से हो ,
मन के दानव
मार भगाएँ।
इंद्रियों के पीछे
छिपे अहम् के
रावण को हराएँ।
चलो आज,
राम और
रहीम के झगड़े
सदा के लिए मिटाएँ।
अपने-अपने राम-रहीम
हृदय में बसा
इस अयोध्या रूपी
भारत को सर्वश्रेष्ठ बनाएँ।
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।
शिक्षा लेने में
न शर्माएँ।
नत मस्तक हो
लक्ष्मण-से हम भी
ज्ञान पाए।
वशिष्ठ-से गुरु
हर गुरु में बस जाएँ।
ये भूमि विश्व का
सर्व श्रेष्ठ गुरुकुल
बन जाए।
हृदय में राम स्थापित कर
चलो दीप जलाएँ।