चाय पीयें मोहब्बत की
चाय पीयें मोहब्बत की
बरसात में बरसे नैना
समझ न पाए,
बादल बरसे
या बरसे नैना ।
याद आया वो
चार पैरों का
एक साथ दौड़ना ।
हाथों का छाता बनाना
और भीग जाना ।
फिर एक नुक्कड़ पर
चाय वाले की छपरी
में खड़े होना ,
वो गरम-गरम चाय पीना ।
एक दूसरे को निहारना,
बिन बोले बतियाना ।
कहाँ गया वो प्यार ?
वो आँखों वाला प्यार ,
वो दिल वाला प्यार ,
वो बूँद-बूँद रिसता प्यार।
जीवन की भाग दौड़ में,
महल बनाने की होड़ में,
दफन होकर
रह गया वो प्यार ।
महलों के मोबाइलों में
शोर मचाता वो प्यार ।
बारिश में गरम-गरम
पकौड़ों का स्वाद ,
उड़ा ले गया कोलेस्ट्रोल
सारे पकौड़ों से प्यार ।
यह देख लगता
क्या, अभी ही दिल धड़कता !
पहले दौड़ता-भागता
गिरी चढ़ता-उतरता,
धड़कता ही नहीं था
निगोड़े दिल का प्यार !
कितने पराए से
हो गए हम,
अपनी ही बरसातें
भूल गए हम ।
चलो फिर चढ़े पहाड़
एक दूसरे का हाथ थाम ।
छोड़े राह सड़कों की,
पकड़े अपनी पगडंडी ।
जकड़ ले वो चिनार
जो छोड़ रहे जड़े अपनी।
भीगे जब बरसातों में,
फिर ढूँढें,
वो छोटी-सी टपरी
जहाँ, चाय पीयें
मोहब्बत की ।