जलधि से भिड़े राम
जलधि से भिड़े राम
जलधि से
भिड़े राम ।
अपनी भार्या
के लिए
पयोधि सुखाने
चले राम ।
पाषाण तार दिए
सागर में राम ।
सेतु बाँध दिया
सिंधु में राम ।
लेने अपनी संगिनी
चले राम ।
जिसे छल से
ले गए लंकेश्वर
अपने धाम ।
मर्यादा का
सबक सिखाने
चले राम ।
अपनी अर्धांगिनी
से
मिलने को
व्याकुल राम ।
पर प्रिय मोह में
ही
नहीं थे राम ।
स्त्री जाति का
प्रथम सम्मान
यह बताने
चले राम ।
सर्वगुण संपन्न
मंदोदरी
प्रियसी घर में,
फिर भी अधर्मी
हर लाया सीता ।
इसका ही
परिणाम
बताने चले राम ।
अपनी पत्नी
और
दूसरे की भार्या का
कैसे
होता सम्मान
यही समझाने
चले राम ।
संसार को
कुटुम्ब की
एकता का
परिचय
देने चले राम ।
अपनी भार्या,
अपनी प्रियसी
अपनी संगिनी,
अपनी सीते
लेने चले राम ।
दशानन रावण,
दैत्येंद्र रावण
निशिचरपति रावण
से युद्ध करने
चले वनवासी राम ।
शस्त्र में नहीं
बसती शक्ति,
मन में बसती
यह विजयी ।
कभी माँ,
कभी भार्या
कभी बहन,
कभी सखी,
कभी सुता बन
बहती यह दुर्गा ।
उसका ही यश
बढ़ाने चले राम।
धरा की पुत्री को
अग्नि से लेने
चले राम ।
संसार को प्रेम
और
मर्यादा का पाठ
पढ़ाने चले राम ।
पर हम सीख
न पाए
कुछ राम ।
बस मुख से
करते रह गए
राम-राम ।
तुझे हम
न समझ
पाए राम ।
अपने कर्मों
से ही हम
विमुख हो
गए राम ।
अब कहाँ
जाए राम ।
आओ राम,
हृदय में
बस जाओ राम ।
फिर एक बार
वह पाठ
पढ़ा दो राम ।
हृदय में प्रेम
जगा दो राम ।