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Manju Rani

Abstract Inspirational

4.7  

Manju Rani

Abstract Inspirational

जलधि से भिड़े राम

जलधि से भिड़े राम

2 mins
397


 जलधि से

 भिड़े राम ।

 अपनी भार्या

के लिए

पयोधि सुखाने

चले राम ।

पाषाण तार दिए

सागर में राम ।

सेतु बाँध दिया

सिंधु में राम ।


लेने अपनी संगिनी

चले राम ।

जिसे छल से

ले गए लंकेश्वर

अपने धाम ।

मर्यादा का

सबक सिखाने

चले राम ।


अपनी अर्धांगिनी

से

मिलने को

व्याकुल राम ।

पर प्रिय मोह में 

ही

नहीं थे राम ।

स्त्री जाति का

प्रथम सम्मान

यह बताने

चले राम ।


सर्वगुण संपन्न

मंदोदरी

प्रियसी घर में,

फिर भी अधर्मी

हर लाया सीता ।

इसका ही

परिणाम

बताने चले राम ।

अपनी पत्नी

और

दूसरे की भार्या का

कैसे

होता सम्मान

यही समझाने

चले राम ।


संसार को

कुटुम्ब की

एकता का

परिचय

देने चले राम ।

अपनी भार्या,

अपनी प्रियसी

अपनी संगिनी,

अपनी सीते

लेने चले राम ।


दशानन रावण,

दैत्येंद्र रावण

निशिचरपति रावण

से युद्ध करने

चले वनवासी राम ।


शस्त्र में नहीं

बसती शक्ति,

मन में बसती

यह विजयी ।

कभी माँ,

कभी भार्या

कभी बहन,

कभी सखी,

कभी सुता बन

बहती यह दुर्गा ।

उसका ही यश

बढ़ाने चले राम।


धरा की पुत्री को

अग्नि से लेने

चले राम ।

संसार को प्रेम

और

मर्यादा का पाठ

पढ़ाने चले राम ।


पर हम सीख

न पाए

कुछ राम ।

बस मुख से

करते रह गए 

राम-राम ।

तुझे हम 

न समझ

पाए राम ।


अपने कर्मों

से ही हम

विमुख हो

गए राम ।

अब कहाँ

जाए राम ।

आओ राम,

हृदय में

बस जाओ राम ।

फिर एक बार

वह पाठ

पढ़ा दो राम ।

हृदय में प्रेम

 जगा दो राम । 


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