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ritesh deo

Abstract

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ritesh deo

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भीतर के विचार

भीतर के विचार

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हमारे भीतर

लगातार विचारों का 

आविर्भाव- अवसान चलता है  

निरन्तर विचार चलते हैं 

परन्तु कभी-कभी नहीं भी चलते 

इसी विचारहीन दशा को 

शून्य में होना कहा गया है 


कभी-कभी शून्य हो जाना अच्छा है 

एहसासों से शून्यता

विकारों से शून्यता 

दुखों से शून्यता

सुखों से शून्यता

कभी-कभी कुछ भी 

ना महसूस करना अच्छा है


इससे हमारी जड़ता 

हमारी सुन्नता टूटती है

जो हमें उस "मैं" 

जो हम अपने आपको मानते हैं


से कुछ समय के लिए 

अलग कर देती है 

हमारी चेतना को विश्राम मिलता है 

इस विश्राम से आनन्द का परम सुख 

जीवन में अपना रास्ता बनाता है 

यही ध्यान की झलक है

खालीपन अच्छा है 

अगर तुम्हें कभी खालीपन पकड़े 


शून्यता लगे 

तो उसमें डूबना 

अपने "मैं" होने को 

तुम छटपटाता महसूस करोगे

आत्मज्ञान की रोशनी

दीपक की भांति सत्य, 

ज्ञान और उजाले का प्रतीक है !


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