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Anish Garg

Others

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Anish Garg

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"पेड़ नहीं मां था वो"

"पेड़ नहीं मां था वो"

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मेरी मां के 

वजूद की तरह वृहद 

मेरी मां की

ममता सा छायादार

हां साहब!

मुझे अंगना में लगा 

वो वृक्ष 

मां जैसा लगता था,

गर्मी की दुपहरी में

अपनी बाजुएं फैला

पत्तों की ओट में 

समेट लेता था 

मुझे अम्मा की तरह,

जब भी 

उसकी छांव में 

सोने का प्रयास करता

वो अपने कंधों पे बैठी

कोयल से 

लोरी सुनवा देता,

फिर साहब! 

मैं कुछ 

ज्यादा बड़ा हो गया,

पेड़ और मेरे

दरमियां का फासला

ज्यादा बड़ा हो गया,

अब बुढ़ापे में

फुर्सतें मिलीं तो

इसी पेड़ के नीचे

कुछ लिख लेता था,

अब ये मां जैसा 

जो ठहरा

दिल की गुफ्तगू भी 

कर लेता था,

और साहब!

दो दिन पहले

सूखे पत्तों के 

कचरे से डरकर

बहू ने बूढ़ा पेड़ 

कटवा दिया,

और बेटे ने 

शिल्पकार को 

बुलाकर तने का 

बुत बनवा दिया,

और...!

जाने अनजाने

शिल्पकार ने

उस काठ से

हूबहू

मेरी "मां" का

अक्स बना दिया.....

हां साहब!

वो पेड़ नहीं

मेरी मां ही था

इस शिल्प ने

मुझे बता दिया.....!!



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